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एक पाती आदरणीय रविश जी के नाम डॉ नीलम महेंद्र की कलम से

yunhi dil se
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एक पाती आदरणीय रविश जी के  नाम डॉ नीलम महेंद्र की कलम से

प्रिय रवीश जी ,
आपका चीनी माल खरीदने का आग्रह करता आलेख पढ़ा तो कुछ विचार मेरे मन में भी उत्पन्न हुए सोचा पूछ लूँ ।
जिन लोगों को आप सम्बोधित कर रहे हैं उनके पास तो स्वयं आप ही के शब्दों में  “खबरों का कूड़ेदान ” यानी अखबार और चैनल देखने का वक्त ही नहीं होता और न ही फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ करने का तो आप की बात उन तक इस माघ्यम से तो पहुँच नहीं पायेगी हाँ उन तक जरूर पहुँच गई जिनका आप उल्लेख कर रहे थे  “फर्जी राष्ट्रवादी ” के तौर पर और जहाँ तक आप जैसी शख्सियत का सवाल है आप ऐसी गलती तो कर नहीं सकते कि सुनाना किसी को हो और सुन कोई और ले ।रविश1
खैर जान कर खुशी हुई कि आपको इस देश के उस गरीबी नागरिक की चिंता है जो साल भर कुछ खाने या पहनने के लिए दिवाली का ही इंतजार करते हैं। यह तो अच्छी बात लेकिन काश कि आप कुछ चिंता अपने देश की भी करते और कुछ ऐसा हल देते जिससे इन लोगों को साल भर काम मिलता और उन्हें खाने और ओढ़ने के लिए साल भर दिवाली का इंतजार नहीं करना पड़ता  ,जैसे कि आप उनके लिए कोई एन जी ओ खोल लेते या फिर किसी भी प्रकार की स्वरोजगार की ट्रेनिंग दे देते और एनडीटीवी के अपने साथियों को भी उनके इस कष्ट से अवगत करा कर उनकी मदद करने के  लिए प्रेरित करते जिन पर शायद आपकी बात का कोई असर भी होता लेकिन  दिन भर फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ करने वालों पर आपकी बात शायद असर कम ही डाले क्योंकि ये बेचारे तो” फर्जी” ही  सही लेकिन राष्ट्रवाद से घिरे तो हैं।
आप कह रहे हैं कि चीन का माल नहीं खरीदना है तो भारत सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि वो चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा दे । रवीश जी आप जैसे अनुभवी शख्सियत से इस नादानी की अपेक्षा न थी क्योंकि आपका कसबा जो तबक़ा पढ़ता है वो दिन भर फेसबुक और ट्विटर पर उल्टियाँ ही करता है और ऐसी एक उल्टी से यह बात सबको पता है कि चूँकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव जी के शासन काल में या फिर कहें कि काँग्रेस के शासन काल में 1995 में भारत वर्ल्ड ट्रेड औरगनाइजेशन का सदस्य बन चुका है जिस कारण भारत सरकार चीन पर व्यापारिक प्रतिबंध नहीं लगा सकती लेकिन भारत की जनता तो लगा सकती है  !
आपने जो जापान का उदाहरण प्रस्तुत किया है तो जापान वहाँ अपनी ट्योटा कार बेचकर अमेरिका से पैसा कमा रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के साथ साथ अपने नागरिकों को रोज़गार भी दे रहा है वो अमेरिकी माल खरीद कर अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान नहीं कर रहा।रविश
भारत सरकार के हाथ बंधे हैं पर भारत वासियों के तो नहीं  ! अगर भारत के आम आदमी की मेहनत की कमाई चीनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के काम आए तो इससे तो अच्छा है कि भारत अपने शहीदों के सम्मान में दीवाली ही न मनाए ।
यह समझना मुश्किल है कि चीन के माल के नाम पर आपको गरीब का जलता घर दिख रहा है उनके रोते बच्चे दिख रहे हैं लेकिन हमारे शहीदों की जलती चिताएँ , उनकी पत्नियों की उजड़ी मांग उनके रोते बच्चे उनके बूढ़े माँ बाप की अपने बेटे के इंतजार में पथरा गई आँखें कुछ भी दिखाई नहीं देता  ?
ऐसा ही हर बार क्यों होता है कि जब हमारे जवान शहीद होते हैं या फिर वे किसी के हाथों फेंके पत्थर से घायल होकर भी सहनशीलता का परिचय देते हुए कोई कार्यवाही करते हैं तो कुछ ख़ास वर्ग को हमारे सैनिकों के घावों से ज्यादा चिंता पैलेट गन से घायल होने वालों के घावों की होती है और मानव अधिकार याद आ जाते हैं  ? क्या हमारे सैनिक मानव नहीं हैं ?
ख़ैर हम बात कर रहे थे चीनी माल की और उसे बेच कर दो पैसा कमाने वाले गरीब की  , तो रवीश जी मुझे इस बात का अफसोस है कि आप इस देश की मिट्टी से पैदा होने वाले आम आदमी को पहचान नहीं पाए  । यह आदमी न तो अमीर होता है न गरीब होता है जब अपनी पर आ जाए तो केवल भारतीय होता है  । इनका डीएनए गुरु गोविंद सिंह जी  जैसे वीरों का डीएनए है जो इस देश पर एक नहीं अपने चारों पुत्र हंसते हंसते कुर्बान कर देते हैं।इस देश की महिलाओं के डीएनए में रानी लक्ष्मी बाई रानी पद्मिनी का डिएनए है कि देश के लिए स्वयं अपनी जान न्यौछावर कर देती हैं  । इतिहास गवाह है जब जब भारत का डिएनए जागा है तो बाकी सबको सोना ही पढ़ा है चाहे वो मौत की नींद ही क्यों न हो।मुझे विश्वास है कि देश हित में इतनी कुर्बानी तो देश का हर नागरिक दे ही सकता है चाहे अमीर या गरीब  ।
आपने नीरज जी की कविता की वो मशहूर पंक्तियां तो सुनी ही होंगी,
”    वह ख़ून  कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं,
वह ख़ून कहो किस मतलब का आ सके जो देश के काम नहीं ।”
फिर भी रवीश जी आपकी चिंता काबिले तारीफ है तो क्यों न आप केवल लिखने या बोलने के बजाय एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करें और पूरे देश के न सही केवल दिल्ली के और नहीं तो केवल अपने घर और आफिस के आस पास के ऐसे गरीबों से उनके चीनी माल को स्वयं भी खरीदें और एनडीटीवी के ग्रुप के अपने कुलीग्स से खरिदवाएँ ताकि उनका भी कुछ भला हो जाए ।
आखिर आपको उनकी चिन्ता है आप उनका भला कीजिए हमें देश की परवाह है हम उसके लिए कदम उठाएंगे।
डाँ नीलम महेंद्र

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