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न्याय में देरी स्वयं अन्याय है —–

yunhi dil se
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8 सितंबर 2006 महाराष्ट्र का नासिक जिला मुम्बई से 290 कि मी दूर “मालेगाव ” दिन के सवा एक बजे हमीदिया मस्जिद के पास शबे बारात के जुलूस में बम विस्फोट हुए जिसमें 37 लोग मारे गए और 125 घायल हुए।29 सितम्बर 2008 मालेगांव पुनः दहला इस बार 8 लोगों की मृत्यु हुई और 80 घायल हुए।
25 अप्रैल 2016 सेशन जज वी वी पाटिल की अध्यक्षता वाली विशेष मकोका अदालत ने इस मामले में गिरफ्तार सभी नौ मुस्लिम आरोपियों को सुबूतों के आभाव में रिहा कर दिया।शुरू में इस केस की छानबीन महाराष्ट्र की ए टी एस द्वारा की गई जिसे बाद में सी बी आई को सौंपा गया और 2011 में इस केस को एन आई ए के अधीन किया गया और आज कोर्ट का फैसला पूरे देश के सामने है।
2006 के मुकदमे के फैसले के बाद अब सभी को 2008 के मुकदमे में फैसले का इंतजार है।दरअसल पिछली यू पी ए सरकार द्वारा जिस “हिन्दू अथवा भगवा आतंकवाद” नाम के शब्द की उत्पत्ति की गई थी अब उसकी हकीकत सामने आने लगी है।इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम “फ्रन्टलाइन ” पत्रिका द्वारा 2002 में किया गया था और मालेगांव धमाकों के दौरान समय अनुकूल जानकर पी चिदंबरम ने अगस्त2010 में इस शब्दावली को आगे बढ़ाया। जिस इशारत जहाँ को तत्कालीन केन्द्रीय ग्रहमंत्री द्वारा एक बेगुनाह नागरिक कहा गया जबकि उन्हें सरकारी दस्तावेजों एवं खुफिया जानकारी के आधार पर पता था कि वह एक आत्मघाती आतंकवादी थी जिसके निशाने पर उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेन्द्र मोदी तथा लाल कृष्ण आडवाणी समेत बी जे पी के अन्य बड़े नेता थे फिर भी यूपीए सरकार ने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर एक झूठे एनकाउन्टर द्वारा इशारत की हत्या का आरोप लगाया था । आज हेडली के बयान और अन्य दस्तावेजों के आधार पर इशारत जहाँ की सच्चाई देश के सामने है।
26/11 को भी आप भूले नहीं होंगे इस हमले में शामिल हफीज़ सैयीद और आई एस आई को भी खुफिया रिपोर्टों को नज़रअंदाज करते हुए तत्कालीन सरकार द्वारा क्लीन चिट दे दी गई थी और कहा गया था कि आरोपियों का सम्बन्ध पाक से नहीं है बात यहीं ख़त्म हो जाती तो भी ठीक था किन्तु आरोप हिन्दू संगठनों (अभिनव भारत और संघ )पर लगाया गया ।
याद कीजिए 2007 के समझौता एकस्प्रेस के धमाके 18 फरवरी 2007 मध्यरात्रि दो बम विस्फोट जिसमें 68 लोग मारे गये थे और अनेक घायल हुए थे। इस घटना के लिए कर्नल पुरोहित को गिरफ्तार किया गया था जबकि यूनाइटेड स्टेटस ने अपनी खुफिया रिपोर्ट में इसमें अरीफ उसमानी नाम के पाकिस्तानी नागरिक एवं लश्कर के हाथ होने की घोषणा कर दी थी आज तक इस मामले में उपर्युक्त नामों में से एक की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है।
आज जब तथाकथित भगवा अथवा हिन्दू आतंकवाद की हकीकत देश के सामने है तो पिछली सरकार द्वारा सभी जानकारियों के बावजूद उपयुक्त कदम नहीं उठाना देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं था ?
विकिलिक्स द्वारा जारी दस्तावेजों में कहा गया है कि जुलाई 2009 में राहुल गाँधी ने यू एस एमबैसेडर टिमोथी रिओमार से कहा था कि भारत को असली खतरा लश्कर से नहीं संघ से है (शायद वे कांग्रेस कहना चाह रहे थे) ।
आइये अब 2008 के मालेगांव के आरोपियों की बात करें 10 अक्तूबर 2008 को महाराष्ट्र पुलिस ने साध्वी प्रज्ञा को पूछताछ के लिए बुलाया और आज तक पूरे देश को उनके लिए न्याय का इंतजार है ।इनकी गिरफ्तारी स्वामी असीमानन्द के बयान के आधार पर की गई थी जिसे वह स्वयं कह चुके हैं कि वह बयान उनसे जबरदस्ती दिलवाया गया था।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि साध्वी प्रज्ञा आज तक बिना किसी FIR और सुबूत के जेल में हैं (इंडिया ओपिनीस के अनुसार) । एन आई ए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के पास साध्वी के खिलाफ पुख्ता सुबूत नहीं होने के कारण उसने उन्हें रिहा करने का प्रस्ताव दे दिया था।इतना ही नहीं 15 अप्रैल 2015 को एपेक्स कोर्ट में जस्टिस एफ एम कालीफूला की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी फैसला सुनाया था कि साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के खिलाफ ऐसे सुबूत नहीं हैं जिनमें उनके ऊपर मकोका के तहत मुकदमा चलाया जाए इसलिए उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए लेकिन आज तक कैंसर जैसी बीमारी और शरीर के निचले हिस्से के पक्षाघात के बावजूद वे जेल में हैं।यह जानकारी आपके लिए अत्यंत पीड़ा दायक होगी कि उनका यह पैरेलेसिस पुलिस द्वारा दी गई प्रताड़नाओं का नतीजा है।टाइम्स आफ इंडिया के अनुसार वेद खुशीलाल आयुर्वेदिक कालेज जहाँ उनका इलाज चल रहा है , राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में साध्वी द्वारा दर्ज शिकायत के बाद उनका बयान दर्ज किया गया जिसमें उन्होंने अपने ऊपर महाराष्ट्र पुलिस द्वारा किए गए अत्याचारों का खुलासा किया है इसके बावजूद उन्हें आज तक न्याय की आस है।आज वो मानवाधिकार कार्यकर्ता कहाँ हैं जो इशारत जहाँ के लिए आगे आए थे, कहाँ है महिला आयोग जो महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है? कहाँ है तृप्ति देसाई जैसी महिला सशक्तिकरण की समर्थक महिलाएं जिन्हें महिलाओं के मन्दिर में महिलाओं के प्रवेश जैसे “अत्यंत संवेदनशील” मामलों पर जागरूकता प्राप्त है लेकिन एक साध्वी के साथ होने वाले अन्याय का दुख नहीं है ।हजारों महिलाओं को मन्दिर में प्रवेश दिलाने से बेहतर होता एक बेकसूर महिला को जेल से बाहर की आजादी दिलाना।
भारतीय न्याय प्रणाली का आधार यह है कि भले सौ गुनहगार छूट जाए किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए कोर्ट अपना काम करता है लेकिन जब तक पुलिस द्वारा आरोपी बनाए व्यक्ति पर आरोप साबित नहीं होते उसे इस प्रकार की शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना देना कहाँ तक उचित है? कल अगर साध्वी प्रज्ञा को अदालत दोषमुक्त करार देकर रिहा कर भी दे तो इतने सालों की उनकी पीड़ित आत्मा को क्या न्याय मिल पाएगा?अंग्रेजी में एक कहावत है –जस्टिस डीलेड इज जस्टिस डिनाइड अर्थात् न्याय में देरी स्वयं अन्याय है —–
डॉ. नीलम महेंद्र

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